संजय लीला भंसाली की 'गुजारिश' ने पूरे किए 15 साल, इच्छामृत्यु पर आधारित थी फिल्म

Sanjay Leela Bhansali: ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन की मजबूत परफॉर्मेंस के साथ, गुजारिश ने न सिर्फ फिल्मों की सीमाओं को आगे बढ़ाया, बल्कि एक ऐसी चर्चा शुरू की, जिसके लिए भारत उस समय पूरी तरह तैयार नहीं था. इसी वजह से इसकी अहमियत आज और ज्यादा बढ़ गई है. 

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Sanjay Leela Bhansali: रिलीज के पंद्रह साल बाद भी गुजारिश (Guzaarish), संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की सबसे साहसी और दिल छू लेने वाली फिल्मों में से एक बनी हुई है, एक ऐसी फिल्म जिसने समाज की सोच को उस समय चुनौती दी थी, जब इच्छामृत्यु और सम्मान के साथ मरने के अधिकार पर खुलकर बातें भी नहीं होती थीं. जब बॉलीवुड मुश्किल और गहरी कहानियों पर बहुत कम काम करता था, तब भंसाली जिनकी कभी-कभी राज कपूर और गुरु दत्त जैसे सिनेमा दिग्गजों से तुलना की जाती है ने एक बेहद इंसानी कहानी बनाई, जिसमें दया, दर्द और चुनाव की बात देखने मिली थी.

मजबूत परफॉर्मेंस

ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन की मजबूत परफॉर्मेंस के साथ, गुजारिश ने न सिर्फ फिल्मों की सीमाओं को आगे बढ़ाया, बल्कि एक ऐसी चर्चा शुरू की, जिसके लिए भारत उस समय पूरी तरह तैयार नहीं था. इसी वजह से इसकी अहमियत आज और ज्यादा बढ़ गई है. 

अपने समय से आगे की फिल्म

जब गुजारिश 2010 में आई, तो उस समय एक मेनस्ट्रीम बॉलीवुड फिल्म का यूथेनेसिया या 'दया मृत्यु' जैसे गंभीर विषय पर बात करना बहुत कम होता था, और कई लोगों के लिए यह थोड़ा असहज भी था. लेकिन भंसाली ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी कहानी के केंद्र में एथन मस्करेनहास (जिसे ऋतिक रोशन ने निभाया) को रखा एक ऐसा जादूगर, जो एक हादसे के बाद पूरी तरह से शरीर से लाचार हो गया था और जो अपनी जिंदगी खत्म करने के अधिकार के लिए कोर्ट में गुहार लगा रहा था.

इज्जत और गरिमा के साथ मौत पर खुली बातचीत

उस समय जब भारत में इच्छामृत्यु (और आज भी काफी हद तक) एक बड़ा टैबू थी, गुजारिश ने बातचीत की एक जगह खोली. भंसाली ने बाद में कहा था कि फिल्म रिलीज होने पर काफी हंगामा हुआ था. लेकिन यही हंगामा दिखाता है कि फिल्म ने लोगों के दिल की सीधी नस को छू लिया. इसने दर्शकों को मजबूर किया कि वो सिर्फ दर्द झेल रहे शरीर के लिए नहीं, बल्कि उस इंसान की इज्जत के बारे में भी सोचें, जो खुद को एक कभी न खत्म होने वाली जिंदगी में फंसा हुआ महसूस कर रहा है.

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भंसाली का संवेदनशील काम

भंसाली जिस भारी विषय को दिखा रहे हैं, उसे बहुत करुणा के साथ संभालते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने इसे एक बहस बताया जिसका जवाब जल्दी नहीं मिलेगा. लेकिन भारीपन में जाने के बजाय, वह अपनी पहचान बने खूबसूरत विज़ुअल्स, संगीत और भावनाओं से भरी कहानी का इस्तेमाल करते हैं.

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