Exclusive: भोपाल का वो गुरुकुल, जिसमें संगीत के अलावा कला को भी दिया जाता है विशेष महत्व

Exclusive With Gundecha Brothers : संस्थान की अध्यक्ष धानी गुंदेचा ने बताया कि हमको ध्रुपद परंपराओं को आगे ले जाना है और इसका प्रचार-प्रसार करना है. हमारा ध्रुपद संस्थान को बढ़ाना सबसे ज्यादा फोकस है.

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Exclusive With Gundecha Brothers

Exclusive With Gundecha Brothers : शास्त्रीय संगीत का महत्व हमारे देश के अलावा दूसरे देशों में भी बढ़ता जा रहा है. इसका आप ताजा-ताजा उदाहरण बीते साल हुए तानसेन महोत्सव (Tansen Mahotsav) में देख सकते हैं. इस महोत्सव में काफी विदेशी कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी. इसके अलावा ध्रुपद संगीत (Dhrupad Sangeet) वह संगीत है जो शास्त्रीय संगीत की एक प्राचीन गायन शैली है. आज हम आपको भोपाल के उस ध्रुपद संस्थान के बारे में बताएंगे, जिसने देश में ही नहीं विदेशों में भी शास्त्रीय संगीत को महत्व दिलाया है. शास्त्रीय संगीत वह संगीत है जो प्राचीन काल से चलता हुआ आ रहा है. इस शास्त्रीय संगीत में ताल, स्वर सभी को एक साथ संयोजित किया जाता है. दूसरी तरफ हम बात करेंगे ध्रुपद संगीत के बारे में जो कि शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है. जिसमें गायन अपनी ध्वनियों से भगवान से प्रार्थना करता है. आज हम आपको उस ध्रुपद संगीत के संस्थान के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसमें संगीत सीखने के लिए हमारे देश से नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं.

संस्थान की अध्यक्ष धानी गुंदेचा ने ये कहा

संस्थान की अध्यक्ष धानी गुंदेचा ने बताया कि हमको ध्रुपद परंपराओं को आगे ले जाना है और इसका प्रचार-प्रसार करना है. हमारा ध्रुपद संस्थान को बढ़ाना सबसे ज्यादा फोकस है. धानी ने आगे कहा कि विदेशों से जो लोग सीखने आ रहे हैं, उसका सारा क्रेडिट मेरे पिताजी और चाचाजी को जाता है. क्योंकि जब वह पहली बार इतनी मेहनत करके भोपाल आए और उन्होंने यह संगीत सीखा. उसके बाद उन्होंने इस संगीत को पूरे भारत में पेश किया. इसके अलावा वो काफी देशों में भी इस संगीत को लेकर गए. भारत सरकार ने मेरे पिताजी को साल 2012 में पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया. जब उन्होंने बाहर परफॉर्म किया तो लोगों ने देखा. तब उसका इतना प्रचार हुआ फिर लोगों ने इस संगीत की तरफ रुख किया. धानी ने बताया कि साल 2002 में इसका शिलान्यास हुआ था और साल 2004 में इसका उद्घाटन हुआ था. जो नया हॉस्टल बना है उसका उद्घाटन पंडित उस्ताद जाकिर हुसैन ने किया था.

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उमाकांत गुंदेचा ने ये कहा

पदमश्री पंडित श्री उमाकांत गुंदेचा ने कहा कि जब मध्य प्रदेश सरकार ने ध्रुपद केंद्र खोला था और मैंने संगीत सीखा. उस वक्त मैंने सोच लिया था अगर जिंदगी में कभी संभव हुआ तो एक ऐसा गुरुकुल खोलेंगे, जो ऐसे ही गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित हो. जहां का वातावरण भी गुरुकुल की तरह हो. बाग-बगीचे हों. खुला माहौल हो, रहने की व्यवस्था हो. जहां खाने की कोई दिक्कत ना हो. सीखने के लिए कोई समय का बंधन ना हो. उन्होंने आगे बताया कि लगभग 30 देशों से लोग यहां संगीत सीखने के लिए आते हैं. जब हमने यह संस्थान खोला था, उससे पहले भी काफी देशों से लोग आकर संगीत सीख चुके हैं. फिर हमारे मन में कॉन्फिडेंस आया कि हमारे इस संस्थान में भी लोग सीखने के लिए आएंगे.

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संगीतकार अखिलेश गुंदेचा ने ये बताया

अखिलेश गुंदेचा ने कहा कि मैं इस संस्थान में ध्रुपद के साथ पखावज सिखा रहा हूं. पखावज अभी नया नाम है. देश विदेशों से लोग यहां आकर सीखते हैं. यह संगीत अनादि काल से चलता हुआ आ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि पखावज को चलाने में काफी कठिनाई होती है. उसे स्त्रियां नहीं बजा सकतीं. लेकिन अब हमारे देश में इस वक्त काफी स्त्रियां इससे बजा रही हैं. यहां हम भी स्त्रियों को पखावज सिखा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि अगर मैं अपने भाई उमाकांत गुंदेचा जी के साथ बॉन्डिंग की बात कहूं तो कभी-कभी कुछ चीजों को लेकर हम दोनों में विवाद हो जाता है. लेकिन हम उसके बाद बैठकर, बातचीत करके सहमति बना लेते हैं.

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