संजय लीला भंसाली की फिल्मों के वो सहायक किरदार जो मुख्य भूमिका जैसे चमके

Sanjay Leela Bhansali: कैमियो रोल होते हुए भी भंसाली ने रहीम लाला को एक साधारण किरदार नहीं रहने दिया. अजय देवगन जैसे सशक्त अभिनेता की कास्टिंग से इस किरदार में गहराई और गरिमा आई. उनका प्रवेश भले ही संक्षिप्त था, लेकिन वह गंगूबाई की कहानी में एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरे.

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Sanjay Leela Bhansali: संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) को भव्य सेट, विशाल कहानी कहने की शैली और अविस्मरणीय नायकों के लिए जाना जाता है. लेकिन वह केवल हीरो-हीरोइन नहीं गढ़ते, वह ऐसे सिनेमाई ब्रह्मांड रचते हैं जहां हर किरदार, चाहे उसकी भूमिका कितनी भी छोटी क्यों न हो, दर्शकों के दिल में गहराई से उतर जाता है. राज कपूर और गुरु दत्त जैसे दिग्गजों की परंपरा में भंसाली भी उन दुर्लभ फिल्मकारों में से हैं जो भव्यता और भावनात्मक गहराई को एकसाथ पिरोते हैं. उनकी फिल्मों में कई बार ऐसा होता है कि सहायक पात्र मुख्य भूमिकाओं को टक्कर देते हैं और फिल्म खत्म होने के बाद भी दर्शकों के जहन में छाए रहते हैं. यहां हम लाए हैं ऐसे ही सीन-चुराने वाले किरदार, जिन्होंने भंसाली की फिल्मों में नायक जैसे प्रभाव छोड़े.

रहीम लाला (अजय देवगन) – गंगूबाई काठियावाड़ी (2022)

कैमियो रोल होते हुए भी भंसाली ने रहीम लाला को एक साधारण किरदार नहीं रहने दिया. अजय देवगन जैसे सशक्त अभिनेता की कास्टिंग से इस किरदार में गहराई और गरिमा आई. उनका प्रवेश भले ही संक्षिप्त था, लेकिन वह गंगूबाई की कहानी में एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरे.

चंद्रमुखी (माधुरी दीक्षित) – देवदास (2002)

भंसाली ने तवायफों को केवल शोभा नहीं, बल्कि त्रासदी और गरिमा के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है. चंद्रमुखी इसका सबसे खूबसूरत उदाहरण हैं. माधुरी दीक्षित ने इस भूमिका को ऐसा स्वरूप दिया कि वह केवल देवदास की प्रेमिका नहीं, बल्कि अपने आप में एक पूरी कहानी बन गईं.

मलिक काफूर (जिम सर्भ) – पद्मावत (2018)

जिम सर्भ के किरदार मलिक काफूर को भंसाली ने केवल खलनायक का साथी नहीं, बल्कि एक अनपेक्षित और जटिल मनोवैज्ञानिक पात्र बनाया. वह कहानी में एक ऐसा तत्व थे जिसने खिलजी की दुनिया को और भी खतरनाक बना दिया.

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शीला (सीमा पाहवा) – गंगूबाई काठियावाड़ी (2022)

भंसाली की विशेषता रही है नैतिक रूप से जटिल किरदारों को गढ़ना. सीमा पाहवा की शीला एक ऐसा ही चरित्र था. कठोर, चालाक, और सच्चाई से भरा हुआ. वह गंगूबाई की प्रतिद्वंद्वी जरूर थीं, लेकिन दर्शकों के लिए उन्हें भूल पाना मुश्किल हो गया.

धनकोर बा (सुप्रिया पाठक) – गोलियों की रासलीला राम-लीला (2013)

मजबूत मातृ शक्तियों का चित्रण भंसाली की खासियत रही है. धनकोर बा इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं. सुप्रिया पाठक ने इस किरदार में प्रेम, सत्ता और प्रतिशोध की अद्भुत त्रिवेणी को जीवंत किया, और भंसाली ने उन्हें शेक्सपियरियन गहराई दी.

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