Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के दुर्गम और लंबे समय से विकास से वंचित क्षेत्र से एक प्रेरणादायक तस्वीर सामने आई है. जहां कभी नक्सलियों का असर इतना गहरा था कि सरकारी अमला तक कदम रखने से डरता था, वहीं अब उसी क्षेत्र के ग्रामीण अपने हाथों से विकास की राह बना रहे हैं. बीजापुर जिले के कौशलनार गांव में सैकड़ों ग्रामीणों ने श्रमदान कर खुद ही 12 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की जिम्मेदारी उठाई है.
इन्द्रावती नदी के पार बसे इस क्षेत्र में सड़क सुविधा का अभाव वर्षों से लोगों के जीवन का बड़ा संकट बनी हुई थी. प्रशासन की सीमित पहुंच और नक्सली दहशत की वजह से न तो मशीनें पहुंच पाती थीं और न ही निर्माण कार्य हो पाते थे, लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही हैं. नक्सलियों के समर्पण और सुरक्षाबलों की बढ़ती उपस्थिति के बाद अबूझमाड़ की तस्वीर बदलने लगी है.
इसके अलावा भी चयनित उम्मीदवारों में से अगर किसी की संघर्ष भरी कहानी हो तो, उन पर भी स्टोरी की जा सकती है.
Photo Credit: Pankaj Bhadauria
तीन दिनों में तैयार होगी 12 किमी की कच्ची सड़क
कौशलनार से करका ब्रिज तक की इस सड़क को ग्रामीण अपने श्रमदान से बना रहे हैं. विकास के इस काम महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे समेत लगभग 800 ग्रामीण शामिल हैं. ये सभी लोग गैती, तगाड़ी और फावड़ा लेकर सड़क निर्माण में जुटे हैं. उनका एक ही उद्देश्य है कि हमारे गांव तक अब एम्बुलेंस और राशन की गाड़ी पहुंच सके. ग्रामीणों का कहना है कि पूरी सड़क तैयार करने में करीब तीन दिन लगेंगे.
अबूझमाड़ में विकास की नई राह: ग्रामीणों ने श्रमदान से बनाई 12 किलोमीटर लंबी सड़क
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बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा पर प्रशासनिक उलझनें
यह क्षेत्र भौगोलिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी विशेष है. ग्राम पंचायत कौशलनार, तुषवाल, मंगनार और हंदवाड़ा जैसी बस्तियां ऐसी स्थिति में हैं, जहां राजस्व सीमा बीजापुर जिले में आती है, जबकि वन क्षेत्र का हिस्सा दंतेवाड़ा के अंतर्गत आता है. इस वजह से विकास कार्यों को लेकर दोनों जिलों के बीच समन्वय की कमी रही है. पूर्व जनपद सदस्य सायबो लेकामी बताते हैं, “अब हमारे क्षेत्र में नक्सल समस्या लगभग खत्म हो चुकी है. कई बार प्रशासन से सड़क निर्माण की मांग की, पर कोई सुनवाई नहीं हुई. इसलिए हमने तय किया कि अब अपने बलबूते ही सड़क बनाएंगे.”
नक्सलियों के साये से उभरा अबूझमाड़, तो ग्रामीणों ने खुद ही उठा लिया सड़क निर्माण का भार
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महिलाएं भी बढ़चढ़कर ले रहीं हिस्सा
सड़क निर्माण में महिलाएं भी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही है. स्थानीय युवती शशि पदामी बताती हैं, “सड़क नहीं होने से एम्बुलेंस नहीं आती है, स्कूल में शिक्षक नहीं पहुंचते हैं. हमने बीजापुर जाकर कलेक्टर से भी कहा, पर सिर्फ आश्वासन मिला. जब कोई नहीं आया, तो हमने खुद फावड़ा उठाया और सड़क बनाना शुरू कर दिया.”
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कभी नक्सल प्रभाव के कारण बंद पड़े गांवों में अब उम्मीद की किरण जगी है. आत्मनिर्भरता और सामूहिक प्रयास की यह मिसाल दिखाती है कि जब जनता ठान ले, तो बदलाव नामुमकिन नहीं होता. अबूझमाड़ की यह सड़क सिर्फ मिट्टी का रास्ता नहीं, बल्कि यह उस विश्वास और हौसले की कहानी है, जो दशकों बाद इस क्षेत्र में पनपी है. यानी यहां विकास की गंगा अब लोगों के हाथों से ही होकर बेहेगी.
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