₹1 करोड़ का इनामी सुधाकर; युवाओं को हिंसक बनाने वाला नक्सली टीचर, कभी शांति चाहता था... जानिए पूरी कहानी

Bijapur Naxal Encounter: माओवादी सीपीआई के महासचिव बसवराजू को अबूझमाड़ के जंगलों में ढेर करने के 15 दिन के भीतर ही सेंट्रल कमेटी सदस्य सुधाकर को मार गिराने को पुलिस बड़ी सफलता मान रही है. बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी का कहना है कि "सुधाकर न केवल माओवादियों का वरिष्ठ कमांडर था, बल्कि नए युवाओं का वैचारिक सलाहकार भी था. आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी.

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Bijapur Naxal Encounter: नक्सली Sudhakar की मौत की कहानी

Naxalite Commander Sudhakar Killed: छत्तीसगढ़ के जंगलों में खौफ फैलाने वाली मोस्ट वांटेड लिस्ट से सुरक्षा बल के जवानों ने एक और नाम कम कर दिया है. माओवादियों के सेंट्रल कमेटी मेंबर टेंटू लक्ष्मी नरसिम्हा चालम उर्फ गौतम उर्फ सुधाकर उर्फ रामकृष्ण नायडू को बीजापुर (Bijapur Naxal Encounter) के नेशनल पार्क एरिया में बीते 5 जून को एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने मारने का दावा किया. 1 करोड़ रुपये के इनामी सुधाकर के शव को भी सुरक्षा बल के जवानों ने बरामद कर लिया. सुधाकर की मौत के बाद अब उसको लेकर कई जानकारियां भी सामने आ रही हैं. पुलिस के खूफिया तंत्र के मुताबिक सुधाकर माओवादियों के सेन्ट्रल रीजनल ब्यूरो के RePOS (रिवॉल्यूशनरी पॉलिटिकल स्कूल) का प्रभारी भी था.

ऐसी है सुधाकर की कहानी

सुरक्षा बल से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सुधाकर को 2021 में CPI (माओवादी) की केंद्रीय समिति में पदोन्नत किया. पार्टी की मुख्य वैचारिक प्रशिक्षण इकाई RePOS (क्रांतिकारी राजनीतिक स्कूल) के प्रभारी थे. इस स्कूल में युवाओं को माओवाद विचार धारा से प्रभावित करने और सरकार के खिलाफ बंदूक उठाना क्यों जरूरी है, उसकी पढ़ाई कराई जाती है.

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कहा जा रहा है कि नक्सलियों के इस स्कूल के लिए बकायदा सिलेबस भी तैयार है. इसमें माओवाद के साथ ही देश में क्रांति के नाम पर उपजी विभिन्न विचारधाराओं को शामिल किया गया है. इस स्कूल में सैन्य प्रशिक्षण के बाद हर कैडर की कक्षाएं लगती हैं और बकायदा पढ़ाई के बाद परीक्षा भी होती है.

कहा ये भी जा रहा है कि इस स्कूल में गांधीवाद से माओवाद तक हर तरह की विचारधाराओं की जानकारी दी जाती है. इस स्कूल में मानसिक तौर युवाओं को हिंसक बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी, पिछले कुछ सालों से इसका जिम्मा सुधाकर के पास ही था. बताया जा रहा है कि सुधाकर की पत्नी, काकराला गुरु स्मृति उर्फ बुदरी उर्फ समता भी एक वरिष्ठ माओवादी कैडर है और वर्तमान में मोबाइल पॉलिटिकल स्कूल (MoPOS) में काम कर रही है.

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नक्सल आंदोलन के लिए पढ़ाई छोड़ी

मूलत: आंध्र प्रदेश के एलुरु जिले (पूर्व में पश्चिम गोदावरी) के चिंतलापुडी मंडल के प्रागदावरम गांव में सुधाकर ने एलुरु के सीआर रेड्डी कॉलेज में पढ़ाई की और बाद में विजयवाड़ा में आयुर्वेदिक चिकित्सा पाठ्यक्रम में दाखिला लिया, लेकिन साल 1980 के आसपास नक्सल आंदोलन में शामिल होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी. 2001 से 2003 तक आंध्र-ओडिशा सीमा विशेष क्षेत्रीय समिति (AOBSZC) के सचिव के रूप में कार्य करते हुए सुधाकर के काम को संगठन ने काफी सराहा और इसके बाद उसकी रैंक बढ़ती गई. पिछले 17 वर्षों से सुधाकर मुख्य रूप से बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र से काम कर रहा था. सुधाकर के पास पार्टी के वैचारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की देखरेख और पार्टी के भीतर उच्च स्तरीय रणनीतिक संचार का प्रबंधन कर रहा था. 

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शांति के लिए जंगल से बाहर निकला

सुधाकर पर आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हत्या, डकैती के मामले भी दर्ज हैं. युवाओं को हिंसक विचाराधारा से प्रभावित करने की ट्रेनिंग देने वाला सुधाकर कभी सरकार से शांति की मांग करने वालों का पैरोकार भी रहा है. नक्सल आंदोलन से जुड़ने के बाद कई सालों तक भूमिगत रहने वाला सुधाकर साल 2004 में आंध्र प्रदेश सरकार और नक्सलियों के बीच हुई शांति वार्ता की कोशिशों के दौरान सबके सामने आया. कुछ वरिष्ठ नक्सल नेताओं के साथ सुधाकर ने आंध्र प्रदेश के गुत्तीकोंडा बिलम में एक जनसभा को संबोधित किया. हैदराबाद में 15 से 18 अक्टूबर, 2004 तक चली बातचीत में युद्धविराम, भूमि अधिकार और नक्सल मामलों में जेलों में बंद कैदियों की रिहाई पर चर्चा हुई. हालांकि इस शांतिवार्ता का कोई हल नहीं निकला और सुधाकर वापस हथियार थाम अंडर ग्राउंड हो गया. सुरक्षाबल के जवानों ने सुधाकर के शव के साथ एके-47 बरामद करने का भी दावा किया है.

माओवादी सीपीआई के महासचिव बसवराजू को अबूझमाड़ के जंगलों में ढेर करने के 15 दिन के भीतर ही सेंट्रल कमेटी सदस्य सुधाकर को मार गिराने को पुलिस बड़ी सफलता मान रही है. बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी का कहना है कि "सुधाकर न केवल माओवादियों का वरिष्ठ कमांडर था, बल्कि नए युवाओं का वैचारिक सलाहकार भी था. हिंसक विचारधारा से युवाओं को जोड़ने में उसकी भूमिका अहम थी. सुधाकर के खात्मे का असर माओवादियों के मनोबल और आंतरिक संरचना पर भी पड़ेगा.

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