'अस्पताल तो है लेकिन इलाज के लिए डॉक्टर-स्टाफ नहीं...' छत्तीसगढ़ में ग्रामीण मरीजों की परवाह किसे!

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के एमसीबी में 10 साल पहले अस्पताल के लिए भवन का निर्माण किया गया था, ताकि ग्रामिण मरीजों का इलाज हो सके, लेकिन एक दशक बीत जानें के बाद भी इस अस्पताल में मरीजों के इलाज करने के लिए अब तक कोई डॉक्टर या स्टाफ की नियुक्ति नहीं की गई है. यहां शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक सब भगवान भरोसे है.

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Hospital Condition bad in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के एमसीबी में 10 साल पहले अस्पताल के लिए भवन का निर्माण किया गया था, ताकि ग्रामिण मरीजों का इलाज हो सके, लेकिन एक दशक बीत जानें के बाद भी इस अस्पताल में मरीजों के इलाज करने के लिए अब तक कोई डॉक्टर या स्टाफ की नियुक्ति नहीं की गई है. यहां शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक सब भगवान भरोसे है. यह मामला एमसीबी जिले के विकासखण्ड भरतपुर के सुदूर वनांचल क्षेत्र के ग्राम पंचायत बड़गांव खुर्द का है.

अस्पताल तो है, लेकिन डॉक्टर नहीं

बता दें कि यहां शासन ने तो चिकित्सालय के लिए भवन खड़ी कर दी, लेकिन डॉक्टरों की नियुक्ति करना शायद सरकार भूल गई. यह अब खंडहर में तब्दील हो रही है. वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि इस भवन में आज तक किसी का उपचार नहीं किया गया. लाखों रुपये की लागत से बने यह भवन सफेद हाथी साबित हो रहा है.

भगवान भरोसे हैं यहां के ग्रामीण

ग्रामीण के मुताबिक, जब से अस्पताल बना है, तब से यहां कोई डॉक्टर इलाज के लिए नहीं आए. ग्रामीण मितानिन के भरोसे हैं. किसी बड़ी बीमारी या डिलीवरी जैसी स्थिति में उन्हें बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

ग्राम पंचायत की सरपंच फूलकुमार ने बताया कि अस्पताल भवन का तो निर्माण किया गया, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं का यहां कोई नामोनिशान नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के किसी भी कर्मचारी की यहां नियुक्ति नहीं की गई. पहुंच विहीन होने के कारण यहां एम्बुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल पाती, जिससे ग्रामीणों को और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

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स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में इलाज के लिए 24 किमी दूर जाना पड़ता

ग्रामवासी राम सजीवन का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में उन्हें 24 किलोमीटर दूर जाकर उपचार कराना पड़ता है. गांव में डॉक्टर न होने के कारण बच्चों के बीमार पड़ने पर उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी उनकी मौत भी हो जाती है.

राम प्रसाद यादव बताते हैं कि बुखार जैसी साधारण बीमारी का भी यहां कोई उपचार नहीं हो पाता है. मितानिन दवाइयां तो देती हैं, लेकिन बड़ा इलाज नहीं हो पाता. अस्पताल बने हुए 10 साल हो गए, लेकिन डॉक्टर की नियुक्ति न होने के कारण इसका कोई फायदा नहीं है.

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कभी नहीं खुला अस्पताल भवन का गेट

शिवधारी प्रसाद यादव कहते हैं कि यहां सिर्फ एक झोलाछाप डॉक्टर के भरोसे ग्रामीण अपने जीवन को खतरे में डालकर इलाज करवा रहे हैं. मेरे परिवार के लोग भी उसी के भरोसे हैं.  ग्रामीण रामदास ने बताया कि अस्पताल कभी खुला ही नहीं और अब तो ये पूरी तरह बंद है. 

गांव की बुजुर्ग महिला दसमतिया बताती हैं कि बीमार होने पर उन्हें खुद ही दवाई खरीदनी पड़ती है.

गांव के बच्चों का भविष्य और स्वास्थ्य खतरे में

सरपंच फूलकुमार का कहना है कि जब तक डॉक्टर और शिक्षक नहीं आएंगे, तब तक यहां कोई काम नहीं हो सकता. अस्पताल और स्कूल दोनों ही बंद हैं, जिसके चलते गांव के बच्चों का भविष्य और स्वास्थ्य दोनों ही खतरे में हैं.

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पूर्व सरपंच जगत लाल बताते हैं कि अस्पताल में पिछले डेढ़-दो साल से कोई नहीं आया है. जब कोई बीमार पड़ता है, तो गांव वाले गाड़ी बुक करके बाहर जाते हैं, लेकिन नदी-नालों के कारण कभी-कभी मरीजों की जान भी चली जाती है.

जिला चिकित्सा अधिकारी अविनाश खरे ने बताया कि पहले यहां संविदा पर एक महिला कर्मचारी थी वो अब छोड़ चुकी है. इसके बाद एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता को रखा गया जो अब वहां नहीं जा रहा है, जिसके चलते चार माह से उसकी सैलरी रोक दी गई है और अब उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा. विभागीय जांच होगी, जिसके बाद अन्य कार्रवाई की जाएगी. ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर को निर्देशित किया गया है कि वहां तत्काल स्टाफ को भेजा जाएं, जिससे वहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मिल सके. 

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