तिरपाल की छत, झाड़ियों की दीवारें... यहां झोपड़ी में चलती है बच्चों की स्कूल

CG News: छत्तीसगढ़  के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक से महज 12 किमी दूर कामराजपाड़ गांव में पिछले 15 सालों से एक झोपड़ी में पाठशाला चल रही है.

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Chhattisgarh News: एक ओर देश डिजिटल इंडिया की बात कर रहा है, वहीं सुकमा जिले के एक गांव में बच्चे आज भी झाड़ियों से बनी दीवारों और तिरपाल की छत के नीचे शिक्षा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. यह कहानी है उस गांव की, जहां पिछले 15 सालों से एक झोपड़ी में स्कूल चल रहा है. न कोई पक्की बिल्डिंग, न बेंच, न शौचालय. बारिश हो या धूप, बच्चे रोज़ इसी अस्थायी ढांचे में पहुंचते है.कुछ ताट पट्टी बैठकर, कुछ गीली ज़मीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं.

सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक से महज 12 किमी दूर कामराजपाड़ गांव में पिछले 15 सालों से एक झोपड़ी में पाठशाला चल रही है. यह सिर्फ एक पाठशाला नहीं है, यह उस जज्बे का प्रतीक है, जो सुविधाओं के बिना भी शिक्षा के दीप को जलाए रखने की कोशिश सालों से कर रहा है. यहां बच्चे किताबों से पहले संघर्ष पढ़ना सीखते हैं.

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 शिक्षा विभाग की लापरवाही समझें या उदासीनता, सालों से झोपड़ी में चल रहे स्कूल की कभी सुध नहीं ली. जून से सितंबर तक जैसे ही बारिश शुरू होती है, तिरपाल की छत टपकने लगती है, दीवारों से पानी भीतर घुसता है. तेज बारिश होने पर बच्चे अक्सर पढ़ाई छोड़कर घर लौटने को मजबूर हो जाते हैं.    

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सलवा जुडूम से झोपड़ी में संचालित है स्कूल

ग्रामीण लक्ष्मण ने बताया कि नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए जन आंदोलन सलवा जुडूम के दौरान से ही यहां स्कूल झोपड़ी में संचालित है. सालों से पक्के भवन की मांग गांव के लोग करते आ रहे है.वर्षों बाद पिछले साल स्कूल भवन की स्वीकृति मिली है लेकिन अब तक पूरा नहीं हो सका है. बारिश में बच्चों को भीगने का डर और गर्मी में घुटन होता है. मजबूरी में बच्चों को झोपड़ी में पढ़ाना पड़ रहा है. गांव तक पक्की सड़क नहीं होने से भी अधिकारी यहां निरीक्षण नहीं पहुंचते हैं.

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बच्चों को पढ़ाने के लिए ग्रामीणों ने खुद तैयार की झोपड़ी...

निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों तक गुहार लगाने के बाद, जब किसी ने नहीं सुनी, तब गांव वालों ने खुद कमर कस ली. ग्रामीणों ने अपने बच्चों को शिक्षा से वंचित न होने देने के लिए खुद झोपड़ी तैयार कर स्कूल बना दिया. कामराजपाड़ में पदस्थ शिक्षकों ने ग्रामीणों की शिक्षा के प्रति जज्बे को देखते तिरपाल व अन्य सुविधाओं का इंतजाम किया और नियमित स्कूल का संचालन कर रहे हैं. शिक्षक बंशगोपाल बैगा ने बताया कि बारिश और गर्मी में बहुत दिक्कत होती है. किसी तरह स्कूल का संचालन कर रहे हैं. स्कूल में पहली से पांचवी तक 7 बच्चें हैं. स्कूल संचालन में ग्रामीणों को पूरा सहयोग मिलता है.

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बीईओ बोले- अतिसंवेदनशील क्षेत्र होने के कारण नहीं मिली थी स्वीकृति 

कोंटा ब्लॉक मुख्यालय से 12 किमी की दूरी को बीईओ पी श्रीनिवास राव अतिसंवेदनशील क्षेत्र बता रहे हैं. कामराजपाड़, एनएच 30 से महज 7 किमी दूर है. इस इलाके में बीते दो साल पहले मिट्टी-मुरूम सड़क का काम हो चुका है. उन्होंने बताया कि कामराजपाड़ में अस्थायी झोपड़ी में संचालित किया जा रहा है. अतिसंवेदनशील क्षेत्र होने के कारण सालों बाद स्कूल भवन की स्वीकृति मिली है. भवन निर्माणाधीन हैं, तीन-चार महीने में भवन को पूरा कर लिया जाएगा.

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