इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि खंडहर हो चुके उन दीवारों में भी जिंदा होता है, जिनमें कभी नारे गूंजते थे और आजादी की लौ जलती थी. NDTV ने आजादी की लड़ाई में पेंड्रा की भूमिका के लिए खंडहर हो चुकी दीवारों के सामने जाकर पड़ताल की. वक्त बीत चुका है, लेकिन उस दौर की खंडहर हो चुकी दीवारें आज भी गवाह हैं. जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था और हर कोने से आजादी की आवाज उठ रही थी. मरते हुए ईंटों और दरकते हुए खंभों के बीच अब भी इतिहास की एक बुलंद कहानी दबी हुई है.
पेंड्रा में स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी रहे चौधरी लालचंद जैन का ऐतिहासिक बाड़ा आज भी वीरान खड़ा है. खंडहर जरूर हो चुका है, लेकिन इसकी मिट्टी में आजादी की लड़ाई की खुशबू अब भी महसूस होती है. स्वतंत्रता संग्राम के ग्रामीण इतिहास में स्वर्गीय लालबंद जैन और चौधरी लालचंद जैन का नाम विशेष स्थान रखता है. लालचंद जैन की ख्याति और दबदबा इतना था कि अंग्रेज पुलिस तक उन्हें गिरफ्तार करने से कतराती थी. पेंड्रा का यह बाड़ा, जो कभी सतगढ़ जमींदारी क्षेत्र के अंतर्गत आता था, क्रांतिकारियों का प्रमुख आश्रय स्थल था.
चुपचाप रहते थे क्रांतिकारी और बनाते रणनीति
बाड़े में बने कमरों में क्रांतिकारी अज्ञातवास काटते थे और वहीं पर गुपचुप तरीके से जर्मन रेडियो सुनते थे, जिस पर उस दौर में सख्त प्रतिबंध था. स्थानीय अंग्रेज दरोगा कई बार रेडियो जब्त करने की मंशा से बाड़े तक आता, लेकिन लालचंद जैन के रुतबे के सामने अंदर घुसने की हिम्मत नहीं कर पाता. 1920 से 1952 तक पेंड्रा क्षेत्र एक प्रमुख व्यापारिक मंडी रहा, जहां कोलकाता, नागपुर, दिल्ली और मुंबई से व्यापारी जंगली उत्पादों के व्यापार के लिए आया करते थे.
चौधरी लालचंद जैन का बाड़ा ही वह केंद्र था, जहां व्यापारी अपनी आढ़त लगाते और रुकते थे. व्यापारिक केंद्र होने के कारण यहां देशभर के अखबार आते, जिसमें व्यापारिक सूचनाओं के साथ क्रांति के आदेश कोने में होते थे, जो संदेश सूचना का माध्यम हुआ करता था. इन्हीं व्यापारियों के बीच क्रांतिकारी गुप्त रूप से शरण लेते और स्वतंत्रता संग्राम की योजनाएं बनाते. दिन में व्यापार होता और रात में आजादी की रणनीति. यह बाड़ा केवल व्यापार का नहीं, बल्कि आजादी के संघर्ष का भी गवाह बना.
क्या कहते हैं लालचंद जैन के नाती
लालचंद जैन के नाती मोती चंद जैन आज भी उस वैभव की यादें संजोए हुए हैं. उनके पास उस दौर की धातु विनिमय मुद्राएं आना, दो आना जैसे पुरानी सिक्के, वस्तु विनिमय के पैमाने अब भी सुरक्षित हैं. वे चाहते हैं कि इन ऐतिहासिक निधियों की पहचान की जाए और इन्हें संग्रहालय या किसी सुरक्षित स्थल में संरक्षित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने इतिहास से रूबरू हो सकें.
ब्रिटिश कालीन अविभाजित बिलासपुर जिला गांधीवादी आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा. वहीं, पेंड्रा क्षेत्र में सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा से प्रेरित क्रांति भी समानांतर रूप से चलती रही. लालचंद जैन उन गिने-चुने व्यक्तियों में से एक थे, जो व्यापार, समाज और राजनीति तीनों में अपनी मजबूत उपस्थिति रखते थे और जिनका घर आजादी के सपनों का गढ़ था.