क्या यही है विकास? झोपड़ी में रहने को मजबूर है Bastar से पूर्व सांसद का परिवार, गांव की हालत देख आ जाएंगे आंसू

Bastar Lok Sabha Constituency: बस्तर से लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल कर दिए हैं. इसी के साथ सभी प्रत्याशी चुनावी प्रचार में जुट गए हैं. लेकिन, विकास के दावे करने वाले नेताओं के दावों से बस्तर की हकीकत कोसों दूर है. NDTV की यह ग्राउंड रिपोर्ट आपको इसी हकीकत से रूबरू कराएगी.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
बस्तर से पहले सांसद मुचाकी कोसा का परिवार इसी झोपड़ीनुमा घर में रहता है.

Lack of Development in Bastar: छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के पहले चरण (1st Phase of Lok Sabha Election) के लिए नामांकन दाखिल हो चुका है. बता दें कि पहले चरण में राज्य की मात्र एक सीट पर चुनाव होना है. यह बस्तर लोकसभा सीट (Bastar Lok Sabha Seat) है. इस बार के चुनाव में हमेशा की तरह ही प्रत्याशी बड़े-बड़े दावे और वादे करने में लगे हैं. लेकिन, यह क्षेत्र आज भी विकास (Lack of Development) के लिए तरस रहा है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यहां के पहले सांसद (First MP of Bastar) का गांव है. बस्तर को पहला सांसद देने वाला सुकमा जिले (Sukma) का इड़जेपाल गांव आज भी विकास से कोसों दूर है. इस गांव की खास बात यह है कि एक ही परिवार से एक सांसद और दो विधायक निर्वाचित हुए हैं. इसके बावजूद जनप्रतिनिधियों का परिवार आज भी झोपड़ी में रहने को मजबूर है. 

आज के दौर में सरपंच या फिर जिला पंचायत का चुनाव जीतने के बाद दो-तीन पीढ़ियों तक उस परिवार की आर्थिक हालत मजबूत हो जाती है लेकिन इड़जेपाल में रहने वाले पूर्व सांसद और पूर्व विधायक का वंशज आज भी गरीबी में जीने को मजबूर है. देश में लोकतंत्र व्यवस्था के 72 सालों बाद भी न तो परिवार के हालात बदले और न ही गांव की तस्वीर बदली. अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 24 साल बाद भी इड़जेपाल के ग्रामीण सड़क, शिक्षा और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं.

Advertisement

यहां पीने के लिए पानी की भी उचित व्यवस्था नहीं है.

संपूर्ण भारत देश में 19 अप्रैल से शुरू होने जा रहे 18वीं लोकसभा चुनावों को लेकर हलचलें तेज हो गई हैं. चुनाव आयोग 7 चरणों में चुनाव कराने जा रहा है. लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक दल पूरे जोश के साथ चुनाव प्रचार में जुट गए हैं. अपने प्रत्याशी को ज्यादा से ज्यादा मतों से जीत दिलाने नेता उन इलाकों तक भी पहुंचने लगे जहां वे बीते 5 सालों में कभी झांकने तक नहीं गए. लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच एनडीटीवी की टीम आज उस गांव तक पहुंची, जिसने बस्तर को पहला सांसद दिया है. सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर इड़जेपाल पंचायत में 700 से ज्यादा मतदाता हैं. पूरा इलाका आदिवासी बहुल्य और 85 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं. एनडीटीवी की टीम बस्तर के प्रथम सांसद के घर पहुंची और मुचाकी कोसा के प्रपौत्र मुचाकी जयराम से बातचीत की.

Advertisement

रिकार्ड मतों से मिली थी जीत

स्वतंत्र भारत का पहला आम चुनाव साल 1951-52 में हुआ. आदिवासी बाहुल्य बस्तर संसदीय सीट से इड़जेपाल गांव के रहने वाले मुचाकी कोसा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरे थे. उन्होंने कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया को रिकॉर्ड मतों से हराया था. मुचाकी कोसा को 83.05 प्रतिशत वोट मिले जो आज भी बस्तर संसदीय सीट के लिए सर्वाधिक वोट प्रतिशत से चुनाव जीतने का रिकार्ड है. इसके बाद इड़जेपाल गांव बस्तर की राजनीति का प्रमुख केंद्र बन गया.

Advertisement

इस गांव में सड़क-पानी समेत बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

यह भी पढ़ें - Loksabha Election: बस्तर में कांग्रेस के लखमा -दीपक की प्रतिष्ठा दांव पर, बीजेपी का चेहरा मोदी ही, जानें ऐसा रहा है इस सीट का हाल

गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव 

इड़जेपाल में भले ही बुनियादी सुविधाओं का अभाव हो लेकिन आज भी गांव की पहचान बस्तर के पहले सांसद के नाम से होती है. मुचाकी कोसा के सांसद बनने के बाद उनके परिवार से उनके बेटे मुचाकी देवा 1966 में जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए, वहीं दामाद वेट्टी जोगा 80 के दशक में केशलूर और कोंटा विधानसभा सीट से दो बार विधायक बने. एक सांसद और दो विधायक देने वाले गांव की जब एनडीटीवी ने पड़ताल की तो हालात बेहद दयनीय नजर आई. दशकों बीत जाने के बाद भी गांव तक पक्की सड़क नहीं बन सकी है. गांव तक पहुंचने के लिए पथरीले और जर्जर सड़क पर चलना आदिवासियों के लिए मजबूरी बन गई है.

सरकारी योजनाओं का बुरा हाल

गांव में सरकारी योजनाओं का बुरा हाल है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांव में एक-दो घर ही दिखे. अधिकांश ग्रामीण झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. गांव में सबसे बड़ी समस्या पीने का पानी है. घर-घर तक पानी पहुंचाने के लिए शुरू की गई जल जीवन मिशन की योजना अधूरी पड़ी है. गांव में पानी टंकी और घर-घर तक पाइप लाइन बिछाए महीनों बीत गए हैं, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे शुरू नहीं किया गया है. वहीं उज्जवला योजना के नाम पर बंटे गैस सिलेंडर आदिवासियों के घरों से गायब थे. ग्रामीण लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल कर रहे हैं और आज भी धुएं के साए में खाना बनाने पर मजबूर हैं. 

पहले सांसद के परिवार ने उनकी स्मृतियां आज भी संजों कर रखी हैं.

सरकारी नौकरी में नहीं है गांव का एक भी युवा

इड़जेपाल गांव में बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या है. सांसद और विधायक निर्वाचित होने वाले गांव से एक भी युवा सरकारी नौकरी में नहीं है. गांव में माध्यमिक स्तर तक स्कूल संचालित होती है लेकिन उच्च शिक्षा के लिए गांव के बच्चों को 10 किमी दूर जाना पड़ता है. युवाओं में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है. जिसको लेकर युवाओं में बेहद नाराजगी है. सरकारी नौकरी नहीं मिलने की वजह से ग्रामीण युवा परिवार के पारंपरिक व्यवसाय महुआ और इमली संग्रहण जैसे कार्यों में समय बिता रहे हैं और आज भी सरकारी नौकरी की आस में हैं. 

पूर्व सांसद के परिवार ने संभाल रखी है स्मृतियां

पूर्व सांसद मुचाकी कोसा के प्रपौत्र मुचाकी जयराम ने कई दस्तावेजों को स्मृतियों के तौर पर संभाल रखा है. उनके पास दादा मुचाकी देवा की फोटो है लेकिन परदादा की तस्वीर नहीं है. पहली बार सांसद बनने पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर मिला प्रमाण आज भी परिवार ने संभाल कर रखा है. आज भी 1952 की संसद भवन की यादगार स्मृतियां इन पन्नों में शामिल है.

यह भी पढ़ें - लोकसभा चुनाव के बाद बंद हो जाएगी महतारी वंदन योजना! पूर्व सीएम ने कहा-कैसे सब कुछ बंद हो रहा है साँय साँय