Panthi: पंथी के पथिक-मिलाप दास बंजारे! लोकनृत्य से इंटरनेशनल पहचान बनाने वाले कलाकार का दर्द

International Panthi Dancer Milap Das Banjare: दुर्ग ज़िले के जरवाय गाँव में जन्मे मिलाप दास के पैर महज़ 8 साल की उम्र में थिरकने लगे, घर की माली हालत ठीक नहीं थी. माँ-बाप के साथ खेत में काम किया. लेकिन पंथी के लिए जुनून कभी कम नहीं हुआ, पंथी अपने गुरु दुकालू राम डहरिया से सीखा और फिर पंथी को बना लिया जीवन का धर्म.

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International Panthi Dancer Milap Das Banjare: मिलाप दास बंजारे का दर्द

International Panthi Dancer Milap Das Banjare: देश दुनिया में छत्तीसगढ़ का मान-सम्मान बढ़ाने वाले कलाकार एक बीमारी में अपने पैर खो चुके हैं, कल तक पंथी के नृत्य (Panthi Dance) में थिरकने वाले पैर अब नहीं रहे, हम बात कर रहे हैं पंथी के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय कलाकार मिलाप दस बंजारे (International Folk Dancer Milap Das Banjare) की. पंथी सिर्फ़ नृत्य नहीं, बल्कि गुरु घासीदास जी के सिद्धांतों का चलता-फिरता स्वरूप है. इसमें आध्यात्मिकता, सामाजिक समरसता और सुधार का संदेश है. इसी संदेश को लेकर मिलाप दास बंजारे ने अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी. आइए देखिए उनका दर्द.

देश-दुनिया में बनाई पहचान

जिसने छत्तीसगढ़ की पवित्र माटी की महक को विदेशों तक पहुंचाया. जिसने पंथी नृत्य को विश्व मंच पर खड़ा किया. आज वही नाम गुमनामी और बीमारी की मार झेल रहा है. ये कहानी है मिलाप दास बंजारे की. पंथी का वो पुजारी, जिसने सब कुछ कला को दे दिया लेकिन अब अकेला है.

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Panthi Dancer Milap Das Banjare: मिलाप दास बंजारे बैठे हुए

दुर्ग ज़िले के जरवाय गाँव में जन्मे मिलाप दास के पैर महज़ 8 साल की उम्र में थिरकने लगे, घर की माली हालत ठीक नहीं थी. माँ-बाप के साथ खेत में काम किया. लेकिन पंथी के लिए जुनून कभी कम नहीं हुआ, पंथी अपने गुरु दुकालू राम डहरिया से सीखा और फिर पंथी को बना लिया जीवन का धर्म.

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1987 में रूस के 9 अलग अलग शहरों में लगातार 3 महीनों तक पंथी की प्रस्तुति दी, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया. इशुरी, कला रत्न, धरती पुत्र, देवदास बंजारे जैसे सम्मान मिले, अब तक 250 से ज़्यादा मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी. सैकड़ों पुरुस्कारों से नवाजे गए.

Panthi Dancer Milap Das Banjare: मिलाप दास बंजारे बिना पैर के

लेकिन एक बीमारी ने सबकुछ बदल दिया. पांव के अंगूठे से शुरू हुआ छोटा घाव धीरे-धीरे नासूर बन गया और एक दिन ऐसा हुआ जब पंथी के सुरमयी ताल को समझने वाले एक पैर को काटना पड़ा. मिलाप दास बंजारे ने ज़िंदगी भर कलाकारी की पैसे नहीं जोड़ सका और अब आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है और अब मजबूर कलाकार लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

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