छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले की एक मासूम बच्ची, टूटा परिवार, और बुढ़ापे में भी हिम्मत दिखाती नानी... यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि गरियाबंद जिले के बारुका गांव की हकीकत है. यहां विशेष पिछड़ी जनजाति कमार की 8वीं कक्षा की छात्रा करीना कमार का बचपन ही संघर्षों से भरा रहा है.
करीना बताती हैं कि पापा और मम्मी के बीच झगड़ा हुआ और पापा ने मां को मार डाला. पापा जेल चले गए और हम चार भाई-बहन अनाथ हो गए.
मासूम करीना और उसके तीन भाई-बहनों की जिंदगी उस वक्त पूरी तरह अंधेरे में डूब गई थी, लेकिन इसी बीच फरिश्ता बनकर सामने आईं इनकी नानी फगनी बाई कमार. उन्होंने बच्चों को अपने घर ले जाकर जैसे-तैसे परवरिश की जिम्मेदारी उठाई. फगनी बाई खुद भी गरीबी की मार झेल रही हैं. उनके पास खेती की जमीन नहीं, रोजी मजदूरी कर गुजर-बसर करती हैं और एक झोपड़ीनुमा कमरे में चार बच्चों के साथ रहती हैं.
फगनी बाई कहती हैंकि ऊपर वाले ने किस्मत में यही लिखा था, बुढ़ापे में इन बच्चों को पालना मेरा फर्ज बन गया. जब तक हिम्मत है, इनका ख्याल रखूंगी.
दिलचस्प बात यह है कि फगनी बाई की कोशिशों के बावजूद सरकारी योजनाओं की जानकारी के अभाव में ये बच्चे अब तक सरकारी सहयोग से वंचित हैं. प्रशासन के पास इन विशेष पिछड़ी जनजाति के बच्चों को चिन्हांकित करने और मदद पहुंचाने के लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि जरूरतमंदों तक मदद पहुंच नहीं पाती.फगनी बाई ने प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान के लिए आवेदन किया था, जो अब स्वीकृत हो चुका है, लेकिन मकान का निर्माण बारिश के बाद ही पूरा होगा. तब तक बच्चों समेत इन्हें उसी कच्ची झोपड़ी में रहकर बारिश के झेलनी होगी.
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