Sapnai Barrage Project News: रायगढ़ जिले में किसानों की उम्मीदों पर पानी फेरता एक अधूरा सपना, जी हां, हम बात कर रहे हैं सपनाई बैराज परियोजना की. साल 2015 में 49 करोड़ की लागत से शुरू हुई इस परियोजना को लेकर किसानों की जिंदगी बदलने का दावा की जा रही थी. तब 1986 हेक्टेयर भूमि को सींचने का सपना दिखाया गया था, लेकिन दस साल बीतने के बाद आज भी यह बैराज अधूरा है. किसानों को न पानी मिला, न उम्मीद पूरी हुई.
सपनई बैराज एक ऐसी परियोजना है, जो आठ गांवों के लिए जीवन रेखा साबित हो सकती थी. जिसमें तिलगा, भगोरा, कोटमार, सपनई, पतरापाली, टारपाली, बनोरा गांव शामिल हैं, लेकिन हकीकत यह है कि 25 किलोमीटर लंबी नहर में से सिर्फ 3 से 5 किलोमीटर ही बन पाई है. बाकी 20 किलोमीटर का काम फाइलों और मंत्रालयों में अटका पड़ा है.
10 साल से सिर्फ आश्वासन
साल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सपनई बैराज को मंजूरी दी थी. 49 करोड़ की लागत से किसानों के खेतों के हरे-भरे होने का सपना दिखाया गया था, लेकिन आज न किसान को पानी मिल रहा है, न खेतों को हरियाली. विभाग का तर्क है कि वन भूमि और भूमि अधिग्रहण में अड़चनें हैं. सवाल यह है, क्या किसानों की जिंदगी इतनी सस्ती है कि दस साल तक उन्हें सिर्फ आश्वासन दिया जाए?
इस वजह से किसान नहीं दे रहे हैं जमीन
पतरापाली के राधेश्याम गुप्ता का कहना है कि नहर को आगे काम पूरा कराने के लिए पतरापाली के किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है, क्योंकि इस योजना को शुरू हुए लगभग 10 साल हो चुके हैं. इसके बावजूद अब भी यह परियोजना अधूरी है. प्रशासन किसानों की जमीनों को खरीद तो रही है, लेकिन एक-दो डिसमिल जमीन का पैसा किसानों को नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहते.
फॉरेस्ट विभाग की मंजूरी का है इंतजार
सपनाई के किसान रविंद्र कुमार पटेल ने बताया इस परियोजना से जुड़े पांच गांव के किसानों में खुशी का माहौल है, क्योंकि वे चाहते हैं कि जल्द से जल्द इस परियोजना को पूरा किया जाए, ताकि किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था हो सके. जल संसाधन विभाग के अधिकारी होमेश नायक का कहना है कि फॉरेस्ट विभाग को प्रस्ताव भेजा गया है. जैसे ही मंजूरी मिलती है, बाकी नहर का काम पूरा कर लिया जाएगा. कोशिश है कि इस साल के अंत तक काम खत्म हो.
टूट रही किसानों की उम्मीद
योजना कागज़ों पर पूरी, लेकिन जमीन पर अधूरी. सपनई बैराज अब किसानों के लिए सिर्फ उम्मीदों की एक टूटी हुई किरण बन गया है. सवाल यह है कि कब तक किसान अधूरी नहर और झूठे आश्वासनों के सहारे जिएंगे? सरकार और विभाग को अब ठोस कदम उठाने होंगे, वरना यह अधूरा सपना आने वाली पीढ़ियों में नाउम्मीदी बढ़ा सकती है. हालांकि, इस परियोजना से जुड़े पतरापाली गांव के किसान सरकार और प्रशासन के ढीले काम काज से नाराज हैं, क्योंकि यह परियोजना ने कछुए की गति से चल रही है.
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पूरे दस साल बीतने को है, लेकिन किसानों को पानी की एक बूंद भी नहीं मिली. सपनई बैराज की अधूरी कहानी सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण नहीं, बल्कि किसानों की टूटी उम्मीदों की गवाही है. अब देखना होगा कि सरकार अपने ही वादों पर कब अमल करती है.
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