एमसीबी (मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर) जिले की कोयला नगरी चिरमिरी, जिसे काले हीरे की नगरी के नाम से जाना जाता है आज भी अपनी अनोखी परंपरा के लिए मशहूर है. यहां अब तक ऑटो-टैक्सियां नहीं चल पाई हैं और यही वजह है कि इस शहर की जीवनशैली में लिफ्ट (किसी से वाहन रुकवाकर बैठ जाना) संस्कृति शामिल हो चुकी है. शहर में ऐसा भी है कि कोई भी बाइक या स्कूटी सवार सड़क किनारे खड़े अनजान व्यक्ति खासकर बाहर से आए नए लोगों को देखकर स्वयं ही रुक जाता है और उन्हें उनकी मंजिल तक छोड़ देता है.
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले का नगर पालिका निगम क्षेत्र होने के बावजूद यह शहर परिवहन साधनों की कमी से जूझ रहा है. चिरमिरी पहाड़ पर बसा हुआ है और करीब 85 हजार आबादी वाला यह हिल स्टेशन अपनी भौगोलिक कठिनाइयों के कारण ऑटो और टैक्सियों से अछूता है. अविभाजित मध्य प्रदेश के समय यहां स्कूटर गिनती के ही थे, जिन पर कॉलरी कर्मी दो-तीन लोग सवार होकर ड्यूटी आते-जाते थे.
धीरे-धीरे बन गई लिफ्ट लेने की परंपरा
धीरे-धीरे यही एक परंपरा बन गई और आज भी लोग शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाने के लिए लिफ्ट का सहारा लेते हैं. एसईसीएल एरिया होने के कारण यहां देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग काम करने आते हैं. इनमें ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली, झारखंड और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्य शामिल हैं.
शहर के अलग-अलग इलाकों के बीच की दूरी भी कम नहीं है. पोड़ी से हल्दीबाड़ी 3 किमी, हल्दीबाड़ी से बड़ा बाजार 3 किमी, बड़ा बाजार से गौदरीपारा 1 किमी, गौदरीपारा से डोमनहील 4 किमी, डोमनहील से गेल्हापानी 3 किमी, गेल्हापानी से कोरिया कॉलरी 2 किमी, पोड़ी से नागपुर 7 किमी और बड़ा बाजार से दुबछोला 3 किमी है. स्थानीय टैक्सी चालकों का कहना है कि घाट-पहाड़ी एरिया होने के कारण यहां ऑटो चलाना संभव ही नहीं है. जीप ही एकमात्र सहारा है और अगर कोई व्यक्ति रात को बस स्टैंड या स्टेशन पहुंचता है तो उसे अपने साधनों से ही सफर करना पड़ता है.
ऑटो चलाने के प्रयास रहे असफल, ज्यादातर इलाके में जंगल
स्थानीय निवासी राजकुमार मिश्रा बताते हैं कि चिरमिरी की भौगोलिक स्थिति इतनी कठिन है कि यहां का सबसे घना इलाका हल्दीबाड़ी है, लेकिन वहां से आधा घंटा किसी भी दिशा में चलें तो जंगल ही जंगल मिलता है. कई बार ऑटो चलाने की कोशिश हुई, लेकिन सभी प्रयास असफल रहे. यही कारण है कि चिरमिरी को देश का इकलौता ऐसा शहर कहा जाता है, जहां मुफ्त में लिफ्ट मिल जाती है.
सिटी बसें नहीं चलीं, लोग एक-दूसरे को हैं जानते
वहीं, एक और स्थानीय निवासी ने बताया कि पूर्व महापौर डमरू रेड्डी ने अपने कार्यकाल में सिटी बसों का संचालन शुरू करवाया था, लेकिन आज वे बसें कबाड़ बन चुकी हैं. लोगों का कहना है कि भारत का यह एक ऐसा शहर है, जहां एक भी ऑटो रिक्शा नहीं चलता. यहां के लोग एक-दूसरे को पहचानते हैं और लिफ्ट दे देते हैं, लेकिन बाहर से आने वाले लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है. उनका कहना है कि सिटी बसें फिर से चलनी चाहिए, लेकिन वर्तमान में वह भी ठप हैं.
नगर निगम चिरमिरी के महापौर रामनरेश राय ने बताया कि शहर की भौगोलिक स्थिति घाट और पहाड़ों से जुड़ी होने के कारण यहां ऑटो रिक्शा चल पाना मुश्किल है. लोग लिफ्ट मांगकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं. उन्होंने कहा कि शासन की ओर से सिटी बस का 10 वर्ष का टेंडर निकाला गया था, जो पिछले महीने ही खत्म हुआ है. बची हुई बसें इतनी जर्जर हो चुकी थीं कि उनकी मरम्मत पर भारी खर्च आता, इसलिए उन्हें बंद कर दिया गया और शासन से नई बसों की मांग की गई है.
29 किमी में फैला है इलाका, 8 अलग-अलग टापुओं पर है बसा
वहीं, पूर्व महापौर डमरू रेड्डी का कहना है कि यह भारत का एकमात्र नगर निगम शहर है जहां आज तक ऑटो रिक्शा नहीं चल पाया. करीब 29 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला यह कोयलांचल आठ अलग-अलग टापुओं पर बसा है और यहां रोजमर्रा के सफर के लिए लोग लिफ्ट, प्राइवेट जीप या गाड़ियों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. यही कारण है कि चिरमिरी की पहचान आज भी बनी हुई है ऑटो नहीं, लिफ्ट लेकर सफर करने वाला शहर.