No Door House: छत्तीसगढ़ में है एक ऐसी बस्ती, जहां लोगों को चोरों का डर नहीं, घरों में नहीं लगाते हैं दरवाजा!

Parthi Schedule Tribe Of Chhattisgarh: कांकेर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिना दरवाजों वाली बस्ती नहरहर ब्लॉक के रिसेवाड़ा गांव में मौजूद है, जह के घरों में दरवाजे नहीं दिखते हैं. यहां दरवाजे की कपड़े पर्दे गेट पर लटकाए जाते हैं. यहां लोगों को चोरी का डर नहीं, क्योंकि उनके पास खोने को कुछ नहीं है.

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CHHATTISGARH KANKER DISTRICT PARDHI SCHEDULE TRIBE NOT USE DOOR IN THEIR HOME

House Without Doors: वर्तमान दौर में अपने कीमतों चीजों को चोरों से सुरक्षित रखने के लिए मजबूत सुरक्षा के इंतजाम में लाखों खर्च करने पर अमादा है, ऐसे में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की एक बस्ती चौंकाती है, जहां घरों में दरवाजे नाम की चीज वजूद में ही नहीं है. जी हां, हम बात कर रहे पारधी जनजाति परिवार की जो घरों में दरवाजे ही नहीं लगाते हैं. 

कांकेर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिना दरवाजों वाली बस्ती नहरहर ब्लॉक के रिसेवाड़ा गांव में मौजूद है, जह के घरों में दरवाजे नहीं दिखते हैं. यहां दरवाजे की कपड़े पर्दे गेट पर लटकाए जाते हैं. यहां लोगों को चोरी का डर नहीं, क्योंकि उनके पास खोने को कुछ नहीं है.

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कांकेर मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर है छत्तीसगढ़ की अनोखी बस्ती

रिपोर्ट के मुताबिक कांकेर मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर नरहरपुर ब्लॉक के ग्राम रिसेवाड़ा के जंगल में मौजूद पारधी जनजाति परिवार के घरों में दरवाजे नहीं होते है. यहां पारधी परिवार के कुल 10 घर बने है, जहां बच्चे-बुजुर्ग और महिला- पुरूष मिलाकर कुल 35 लोगों की आबादी है. कच्चे मकानों में रहने वाला आदिवासी परिवार के घरों कोई दरवाजा नहीं है. 

पारधी जनजाति पर घरों में दरवाजे नहीं, सिर्फ पर्दे लगाकर रखते हैं

पारधी परिवार के लोग गर्व से कहते हैं उनके किसी भी मकान में दरवाजे नहीं लगे है, वो घरों में सिर्फ पर्दे लगाकर रखते है और जरूरत पड़ने पर बांस की जाली बनाकर घरों को ढंक देते है. बस्ती में सभी लोग एक परिवार की तरह रहते है, एक दूसरे का विश्वास ही उनका दरवाजा है. इसलिए चोरी होने का डर नहीं है.

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घूम-घूमकर जीविका जलाने वाले पारधी जनजाति के लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं. इसलिए उनका विश्वास आज भी एक दूसरे पर टिका है. यही वजह है कि इनके घरों में दरवाजे नहीं है. सरकारों का भी पारधी जनजाति के लोगों पर ध्यान नहीं देती है, जिससे इनके जीवन में बदलाव आए.

बांस के पर्रे व टुकनी बनाकर गुजार करते हैं घुमन्तू पारधी जनजातियां

गौरतलब है पारधी जनजाति के लोग घुमन्तू की तरह जीवन बिताते हैं. जानकर बताते हैं कि घूम-घूम कर शिकार करने वाले पारधी जनजाति के लोग किसी एक जगह नहीं रह पाते है. मुख्य रूप से बांस के पर्रे और टुकनी बनाकर गुजारा करने वाले पारधी जनजाति के साक्षर नहीं हैं, इसलिए आज भी आदिम युग में जी रहे है. 

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