पति को पत्नी बोलती थी ‘पालतू चूहा’, तलाक मामले में छत्तीसगढ़ कोर्ट की टिप्पणी- 'मां-बाप से दूर रखना मानसिक क्रूरता है'

Chhattisgarh News: तलाक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि पति को मां-बाप से दूर रखना मानसिक क्रूरता है. साथ ही कोर्ट ने तलाक आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

Chhattisgarh Hight court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक 2010 के अहम वैवाहिक विवाद मामले में पत्नी की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को बरकरार रखा है. कोर्ट ने माना कि पत्नी का अपने पति को ‘पालतू चूहा' कहना और बार-बार यह शर्त रखना कि वह माता-पिता से दूर रहकर ही उसके साथ रहे. मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के प्रति मौखिक अपमान, दबाव और आलोचनाएं सीधे तौर पर कानूनी अर्थों में क्रूरता साबित होती हैं. सुनवाई के दौरान पत्नी ने स्वीकार किया कि उसने पति को छोड़ दिया था, जिससे पति के आरोप और मज़बूत हो गए.

मां-बाप से दूर रखना मानसिक क्रूरता'- कोर्ट

कोर्ट ने पत्नी का वह संदेश भी रेखांकित किया जिसमें उसने लिखा था 'अगर आप अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहना चाहते हैं तो बताइए, वरना मत पूछिए.' खंडपीठ ने कहा कि ऐसा संदेश और लगातार दबाव पति को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा है, भारतीय संयुक्त परिवार परंपरा को देखते हुए पति को माता-पिता से अलग करने की ज़िद अनुचित और क्रूर व्यवहार है.

क्या है मामला?

पति-पत्नी का विवाह वर्ष 2009 में हुआ था और उनका एक बेटा है. पति ने आरोप लगाया कि पत्नी लगातार उसे माता-पिता के खिलाफ भड़काती रही,अलग रहने की मांग करती रही और यहां तक कि उसे पालतू चूहा कहकर अपमानित भी किया. बच्चे के जन्म के बाद पत्नी मायके चली गई और फिर ससुराल नहीं लौटी. 2019 में फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका स्वीकार कर विवाह विच्छेद का आदेश दिया था.

Advertisement

पत्नी ने क्या पक्ष रखा?

पत्नी ने अदालत में दावा किया कि पति ने भावनात्मक और आर्थिक रूप से उपेक्षा की है. उसने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि वह कभी भी पति को छोड़ने की मंशा नहीं रखती थी.

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी लंबे समय तक मायके में रही और इसके लिए कोई ठोस वजह नहीं बताई. पति के अधिकतर साक्ष्य चुनौतीहीन रहे, जिससे साबित हुआ कि 21 अप्रैल 2016 तक पत्नी ने पति का परित्याग किया, जो डेजर्शन की कानूनी परिभाषा में आता है. नतीजतन हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी. हालांकि बेटे की परवरिश को देखते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि पति, पत्नी को 5 लाख रुपये भरण-पोषण राशि का भुगतान करेगा.

Advertisement

ये भी पढ़े: सुकमा में सुरक्षाबलों का बड़ा ऑपरेशन: नक्सलियों की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री ध्वस्त, भारी मात्रा में हथियार-बारूद बरामद

Topics mentioned in this article