CM साय बोले- 'बचपन में परिवार की जिम्मेदारी ने खेल-कूद के लिए समय नहीं दिया, सेवा में मिलता है सुकून'

Chhattisgarh CM Vishnu Dev Sai: छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय का राजनीतिक सफर आगे बढ़ता रहा. साय तीन बार विधायक और चार बार सांसद चुने गए. साल 2023 में वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे, जब उन्हें छत्तीसगढ़ का पहला आदिवासी मुख्यमंत्री चुना गया.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins

Chhattisgarh CM Vishnu Dev Sai Biography: दस साल की उम्र में पिता को खोने के बाद विष्णु देव साय के पास खेल-कूद और मौज-मस्ती के लिए समय ही नहीं था. चार भाइयों में सबसे बड़े होने के कारण उन्होंने तुरंत परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी. साय ने कहा कि शायद इसीलिए वह कभी व्यक्तिगत रूचियों पर ध्यान नहीं दे पाए और अब उन्हें केवल सामाजिक कार्यों में ही सुकून मिलता है.

'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं सरपंच बनूंगा': CM साय

रविवार को ‘पीटीआई-वीडियो' को दिए साक्षात्कार में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री साय ने अपने परिवार और अपनी राजनीतिक यात्रा के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि युवावस्था में ही वह गांव के पंच चुन लिए गए थे और पांच साल बाद वह 1990 में 26 साल की उम्र में सरपंच बन गए. उन्होंने कहा, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं सरपंच बनूंगा.'

Advertisement

3 बार विधायक और 4 बार सांसद चुने गए सीएम साय

हालांकि इसके बाद उनका राजनीतिक सफर आगे बढ़ता रहा. साय तीन बार विधायक और चार बार सांसद चुने गए. साल 2023 में वह सत्ता के शिखर पर पहुंचे, जब उन्हें छत्तीसगढ़ का पहला आदिवासी मुख्यमंत्री चुना गया.

Advertisement

साय को बचपन में खेल-कूद के लिए नहीं मिला मौका

विष्णु देव साय ने कहा, 'पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को भी आदिवासी मुख्यमंत्री कहा जाता है लेकिन उनके निधन तक उनका आदिवासी दर्जा विवाद में रहा.' साय ने कहा, 'बचपन में मुझे खेल-कूद का मौका नहीं मिला क्योंकि 10 साल की उम्र में मेरे पिता का निधन हो गया था. उनके निधन के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई क्योंकि मैं चार भाइयों में सबसे बड़ा था. मेरा सबसे छोटा भाई तब दो महीने का था. मेरे पिता के तीन भाई थे और वे सभी अलग-अलग गांवों में रहते थे. मुझे अपने छोटे भाइयों और मां की देखभाल के साथ-साथ हमारे गांव बगिया (जशपुर जिला) में खेती-किसानी का काम भी करना था.'

Advertisement

ग्रामीणों के कहने पर राजनीति में रखा कदम

उन्होंने कहा, ‘तब मैंने खेती-किसानी करके अपने भाइयों को शिक्षित करने का फैसला किया, ताकि वे जीवन में सफल हो सकें. मैंने कभी सरपंच बनने के बारे में नहीं सोचा था.' साय ने कहा कि उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और स्थानीय ग्रामीणों के कहने पर अपने गांव के पंच बन गए. उन्होंने कहा, ‘गांव के कुछ लोगों ने मुझे पंच बनने के लिए कहा और मैंने यह जिम्मेदारी संभाल ली. पांच साल तक मेरा काम देखने के बाद उन्होंने 1990 में मुझे निर्विरोध सरपंच चुन लिया.'

उन्होंने कहा कि सरपंच बनने के छह महीने के भीतर ही राज्य में विधानसभा चुनाव हुआ और उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतारा गया. उन्होंने कहा, ‘मैं तब 25-26 साल का था और सीख रहा था. मैंने पार्टी से कहा कि ‘मैं विधायक बनने के लायक नहीं हूं.' मैंने 1990 में तत्कालीन मध्य प्रदेश की तपकारा सीट (जशपुर जिले में) से चुनाव लड़ा और जीता. यह विधायक के रूप में मेरी यात्रा की शुरुआत थी.'

ऐसा है विष्णु देव साय का राजनीतिक सफर

साय 1993 में लगातार दूसरी बार तपकारा से चुने गए. 1998 में, उन्होंने पड़ोस के पत्थलगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. बाद में वह लगातार चार बार - 1999, 2004, 2009 और 2014 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. 2014 में केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद, उन्हें केंद्रीय इस्पात और खान राज्य मंत्री नियुक्त किया गया.

कुनकुरी सीट से विधायक चुने गए साय

विष्णु देव साय ने 2006 से 2010 तक और फिर जनवरी 2014 से उसी वर्ष अगस्त तक भाजपा की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. राज्य में 2018 में भाजपा की सत्ता जाने के बाद, उन्हें 2020 में फिर से प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई.

साय ने कहा, ‘मैंने राजनीति में ‘जनसेवा' के लिए प्रवेश किया. लोगों की बात सुनना और उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करना अच्छा लगता है. जब मैं बीमार लोगों की मदद करता हूं तब मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं राजनेता बनूंगा. मुझे जो भी जिम्मेदारी सौंपी गईं, मैंने उन्हें पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया.'

सांसद रहते हुए दिल्ली में अपने आवास को 'मिनी एम्स' कहे जाने को याद करते हुए, साय ने कहा, ‘दिवंगत भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव दिल्ली में मेरे फ्लैट (आधिकारिक आवास) पर आते थे और वहां एम्स दिल्ली में भर्ती लोगों के रिश्तेदारों को ठहरा हुआ देखकर कहते थे कि आपने अपना घर ‘मिनी एम्स' बना लिया है.'

उन्होंने कहा, ‘जब मैं राज्य मंत्री (2014 से 2019) था, तब मैं रोजाना 70-80 लोगों के भोजन की व्यवस्था करता था, जिनके परिजन अस्पताल में भर्ती होते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मैंने यहां कुनकुरी सदन की स्थापना की है, जहां राज्य भर से इलाज के लिए रायपुर आने वाले लोगों को विभिन्न प्रकार की सहायता और मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है.'

राजनीति परिवार से रहा साय का नाता

साय राजनीतिक परिवार से आते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘मेरा परिवार शुरू से ही राजनीति में रहा है. आजादी के बाद, मेरे दादा दिवंगत बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक थे. मेरे चाचा (दादा के छोटे भाई के बेटे) दिवंगत नरहरि प्रसाद साय ने तीन बार विधायक के रूप में कार्य किया और सांसद (1977-79) भी चुने गए. उन्होंने जनता पार्टी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया. बाद में मेरे चचेरे भाई रोहित साय भी विधायक चुने गए.'

मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके पिता के बड़े भाई दिवंगत केदारनाथ साय भी जनसंघ सदस्य के रूप में तपकारा से विधायक चुने गए थे.

साय की छवि एक विनम्र राजनेता की है और यह उनकी ताकत मानी जाती है.

ये भी पढ़े: Santhara Ritual: ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन साल की बच्ची ने त्यागा देह, क्या होती है संथारा प्रथा? जानें जैन धर्म में इसका महत्व

Topics mentioned in this article