Kirori Mal Arts and Science College Dispute: रायगढ़ का सबसे बड़ा कॉलेज- किरोड़ीमल कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, जहां से हजारों छात्र-छात्राएं अपने भविष्य की इमारत खड़ी करने का सपना देखते हैं, वहां आजकल हालात ऐसे हैं कि नींव में ही दरारें नज़र आने लगी हैं. इन दिनों ये कालेज छात्रों के गुस्से का मैदान बन गया है. और छात्रों ने गेट पर ताला जड़ दिया. नारों की गूंज, बैनर की लहराती आवाज़ और आक्रोश से भरे चेहरे, वजह वही पुरानी- बुनियादी सुविधाओं की बदहाली.छात्रों का कहना है कि कॉलेज परिसर में जगह-जगह वॉटर कूलर तो लगाए गए हैं, पर उनमें पानी ही नहीं आता. मजबूरन छात्रों को क्लास छोड़कर बाहर से बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है. यानी पढ़ाई से ज्यादा वक्त अब पानी की खोज में लगने लगा है. शौचालयों की हालत तो इतनी खराब कि इस्तेमाल करना मुश्किल है. शिकायतें कई बार हुईं, लेकिन प्रबंधन की ओर से न तो मरम्मत हुई, न ही सफाई की व्यवस्था सुधरी.
फीस पूरी, सुविधाएं अधूरी
धरने पर बैठे छात्रों की आवाज़ और भी तीखी हो गई जब उन्होंने मीडिया से कहा- “हर साल फीस तो ली जाती है, लेकिन बदले में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दी जातीं. पानी चाहिए तो नहीं मिलेगा, पर टॉयलेट में लगे नल और बेसिन लगातार पानी बहाकर बर्बाद कर रहे हैं. एक तरफ प्यास, दूसरी तरफ बर्बादी, यानी प्रबंधन की नीतियां भी इन खराब नलों की तरह टपक-टपक कर रिस रही हैं”. छात्र संघ ने कॉलेज प्रशासन पर साफ आरोप लगाया कि उनकी रणनीति बस आश्वासन तक सीमित है. हर समस्या का एक ही जवाब- जल्द समाधान होगा लेकिन यह जल्द सालों से छात्रों की डायरी में लंबित पड़ा है. भरोसा अब लगभग खत्म हो चुका है. और यही वजह है कि छात्रों ने अब आंदोलन का रास्ता चुना है.
बार-बार जल्द समाधान का राग
दूसरी तरफ कॉलेज प्राचार्य डॉ. ए.के. भारती का कहना है कि वो छात्रों की समस्याओं को समझते हैं और जल्द समाधान किया जाएगा. मगर सवाल वही है—कितनी बार? क्योंकि यही वादा छात्र पहले भी सुन चुके हैं, और जब 3500 से ज्यादा छात्र-छात्राएं एक ही परिसर में पढ़ रहे हों, तो बुनियादी सुविधाओं की कमी केवल प्रबंधन की लापरवाही नहीं बल्कि एक तरह का मज़ाक है.
छात्रों ने दी आंदोलन की चेतावनी
धरने पर छात्रों ने साफ चेतावनी दी- अगर समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं हुआ, तो आंदोलन और बड़ा होगा. रायगढ़ के इस कॉलेज की तस्वीर यह बता रही है कि जब देशभर में ‘नई शिक्षा नीति' और ‘विश्वस्तरीय कैंपस' की बातें होती हैं, तब ज़मीनी हकीकत यह है कि छात्र आज भी पानी और शौचालय जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर हैं.