21 गांवों में कब तक रहेगा अंधेरा? तीन पीढ़ियों से बिजली के बगैर जी रहे हैं हजारों लोग, अब इनसे है आस

CG News: छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के बारनवापारा अभयारण्य क्षेत्र के 21 गांव आज भी बिजली जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं. इन गांवों में रहने वाले हजारों लोग तीन पीढ़ियों से बिना बिजली के जीवन जीने को मजबूर हैं.

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बिजली के लिए कलेक्टर से गुहार

CG Villages without Electricity: एक तरफ जहां देश डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है और दुनिया एआई की ओर कदम बढ़ा चुकी है. वहीं बलौदा बाजार जिले के बारनवापारा अभयारण्य क्षेत्र के 21 गांव आज भी बिजली जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं. 

आज़ादी के 77 साल बाद भी इन गांवों के लोग सिर्फ दो रुपए में होने वाले एक फोटो कॉपी कराने के लिए 25 किलोमीटर दूर महासमुंद जिले के पिथौरा जाने को मजबूर हैं. कहने को तो सरकारी योजनाओं के तहत गांवों में सोलर लाइटें लगाई गई हैं, लेकिन ये शाम ढलते ही आधे घंटे में ही बंद हो जाती हैं. 

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जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं में शामिल बिजली अब भी इन गांवों की पहुंच से बाहर है. सैकड़ों परिवारों के घरों में न पंखा चलता है, न मोटर लगी है और न ही बिजली का मीटर. मोबाइल चार्जिंग, टीवी या कूलर जैसी सुविधाएं उनके लिए सपना हैं. 

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कलेक्टर से लगाई गुहार

प्रभावित गांवों के प्रतिनिधियों ने बलौदा बाजार कलेक्टर दीपक सोनी से मिलकर पूरे क्षेत्र की समस्या बताई. ग्रामीणों के मुताबिक, कलेक्टर ने इसे गंभीरता से लिया है और जल्द ही गांवों का दौरा करने की बात कही है. साथ ही कलेक्टर ने उन्हें जानकारी दी कि इस क्षेत्र में बिजली व्यवस्था के लिए 95 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत करने के लिए प्रावधान किया गया है, जिससे जल्द राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. 

इधर NDTV से बातचीत में ग्रामीणों ने बताया कि कागजों में उनके गांव सोलर लाइटों से रौशन दिखाए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन लाइटों की रोशनी अंधेरे में टिक नहीं पाती. शिक्षा पर भी इसका गहरा असर है—बच्चे ऑनलाइन कक्षा तो दूर, सामान्य पढ़ाई के लिए रोशनी तक के मोहताज हैं. नेटवर्क की स्थिति इतनी खराब है कि एक साधारण कॉल भी लगाना मुश्किल होता है. 

ग्रामीणों ने बताया कि बारनवापारा अभ्यारण्य क्षेत्र वन विभाग के अधीन है. जब वे अधिकारियों से बिजली सुविधा की मांग करते हैं तो वन विभाग जिम्मेदारी बिजली विभाग पर डाल देता है, जबकि बिजली विभाग का रटा-रटाया जवाब होता है कि यह क्षेत्र अभयारण्य के कोर जोन में आता है. ग्रामीणों का दावा है कि कोर क्षेत्र में कोई भी गांव स्थित नहीं है, फिर भी अधिकारियों द्वारा लगातार बहाने बनाकर कार्य टाला जा रहा है. यहां रह रहे आदिवासी परिवारों की तीन पीढ़ियां अब तक बिना बिजली के जीवन जीने को मजबूर हैं.

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इन गांवों में नहीं है बिजली व्यवस्था 

ग्रामीणों ने बताया कि दोंद, पाड़ादाह, मुड़पार, बार, हरदी, रामपुर, लोरिदखार, आमगांव, मोंहदा,  देबीखार, देबा, रवान, कौहाबाहरा, मुरुमडीह, हठतालडबरा, गुड़ागढ़, भिभौरी, नवाडीह, बफरा, तुरतुरिया, झालपानी और फुरफुंदी में बिजली व्यवस्था नहीं है. 

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