Birsa Munda Jayanti 2025: भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती 15 नवंबर 2025 को छत्तीसगढ़ समेत देशभर में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में धूमधाम से मनाई गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस पर गुजरात के डेडियापाड़ा में भगवान बिरसा मुंडा जी की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किए और कहा कि उनका जीवन और आदर्श देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा.
Pm Modi on Birsa Munda Jayanti 2025
उधर, छत्तीसगढ़ में कोंडागाँव जिले के केशकाल विधायक नीलकंठ टेकाम ने स्थानीय जिला भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कार्यक्रमों की रूपरेखा साझा की थी. उन्होंने कहा कि 15 नवंबर 2025 को प्रदेश और जिला स्तर पर कई सांस्कृतिक और जनजागरण कार्यक्रम होंगे, जिनका उद्देश्य बिरसा मुंडा के विचारों और बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुँचाना है.
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विधायक नीलकंठ टेकाम ने क्या कहा?
विधायक टेकाम ने कहा कि “भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष कर स्वतंत्रता संग्राम की मशाल जलाई थी. उन्होंने आदिवासी समाज को संगठित कर अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई. उनके जीवन से हमें आत्मसम्मान, स्वाभिमान और देशभक्ति की प्रेरणा मिलती है.”
उन्होंने बताया कि जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर लाभार्थी योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का वितरण किया जाएगा. साथ ही, प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, निबंध और चित्रकला प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी. जिला स्तरीय मुख्य आयोजन में समाज के प्रमुख व्यक्तियों को सम्मानित किया जाएगा.
Why is Birsa Munda so famous? Birsa Munda Jayanti 2025
कौन थे बिरसा मुंडा, कैसे बने आदिवासियों के भगवान?
भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को छत्तीसगढ़ के खूंटी जिले के उलिहातु में हुआ. उन्होंने 9 जून 1900 (आयु 24 वर्ष) रांची सेंट्रल जेल में आखिरी सांस ली. उन्हें आदिवासियों के भगवान का दर्जा मिला.
बिरसा मुंडा भारत के महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक सुधारक और लोकनायक थे. बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और जमींदारी प्रथा के खिलाफ “उलगुलान” (महान जनजातीय विद्रोह) का नेतृत्व किया था.
उनके अनुयायियों ने उन्हें “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) का दर्जा दिया. उन्होंने आदिवासी समाज में एकेश्वरवाद, स्वच्छता, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा दिया. उन्होंने शराबखोरी, अंधविश्वास और जबरन श्रम (बेथ बेगारी) के खिलाफ अभियान चलाया.
उलगुलान का आह्वान
बिरसा मुंडा ने आदिवासी भूमि पर हो रहे कब्जे और अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. उनका नारा था-“अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडु जाना” (रानी का शासन समाप्त हो, हमारा शासन शुरू हो). उन्होंने आदिवासी समुदायों से लगान देना बंद करने का आग्रह किया और आत्मशासन की मांग की. 1900 में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गई, लेकिन उनके नेतृत्व में हुआ यह आंदोलन ब्रिटिश शासन की नींव हिला गया.
विरासत और सम्मान
बिरसा मुंडा के संघर्ष के परिणामस्वरूप वर्ष 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया, जिसमें आदिवासियों की भूमि सुरक्षा को कानूनी मान्यता मिली. भारत सरकार ने वर्ष 2021 से 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की. बिरसा मुंडा आज भी साहस, नेतृत्व और आत्मसम्मान के प्रतीक हैं.
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