डोंगरगढ़ के जिस मंदिर में अमित शाह ने की पूजा, जानें क्या है वहां की मान्यताएं

Bambleshwari Temple in Dongargarh Chhattisgarh डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी मंदिर में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पूजा की. यह मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में स्थित है और इसकी ख्याति दूर-दूर तक है. मंदिर की मान्यता है कि यहां भगवान शिव और मां दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को संतान की प्राप्ति हुई थी. मंदिर से जुड़ी एक प्रेम कहानी भी प्रसिद्ध है, जो कामकंदला और माधवनल की है.

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Amit Shah in Dongargarh: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह गुरुवार को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ पहुंचे. यहां वे आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के 'प्रथम समाधि महोत्सव' में शरीक हुए. शाह ने यहां मां बम्लेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना भी की. ऐसे में लोगों की दिलचस्पी इस मंदिर को लेकर होना स्वाभाविक है.

हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरे डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी (Bambleshwari Temple) देवी के मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है. राजनांदगांव जिले में स्थित डोंगरगढ़ लोक आस्था के साथ-साथ ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व का केंद्र है. यहां हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु बमलाई दाई यानी मां बम्लेश्वरी के दर्शन करने आते हैं.

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ऐसे तो छत्तीसगढ़ में दंतेश्वरी देवी मंदिर, चंद्रहासिनी मंदिर समेत अन्य शक्तिपीठों से जुड़ी मान्यताएं लोगों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ, ऐतिहासिक साक्ष्यों और अनेक किवदंतियों की वजह से मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर का विशेष महत्व है. 

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लोक मान्यता है कि 2200 साल पहले डोंगरगढ़ का नाम कामाख्या नगरी था. यहां राजा वीरसेन का शासन था. निःसंतान राजा ने पुत्र रत्न की कामना के लिए महिष्मति पुरी में स्थित शिवजी और भगवती दुर्गा की उपासना की. इसके बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इस कहानी के मुताबिक, भगवान शिव और मां दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को संतान की प्राप्ति हुई थी. लिहाजा राजा ने कामाख्या नगरी में मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर बनवाया. अब मौजूदा दौर में लोग शिव और शक्ति स्वरूपा मां बम्लेश्वरी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाकर खुद को धन्य समझते हैं. 

कामकंदला-माधवनल की प्रेम कहानी के किस्से

कामकंदला और माधवनल की ऐतिहासिक प्रेम कहानी भी यहां की फिजाओं में आज भी तैरती है. मान्यता है कि कामकंदला, राजा कामसेन के राज दरबार में नर्तकी थी. वहीं माधवनल उस दौरान वहां निपुण संगीतज्ञ हुआ करते थे. कामकंदला और माधवनल एक दूसरे को प्रेम पत्र भी लिखते थे. लेकिन एक दिन उनके पत्रवाहक को राजा मदनादित्य ने पत्र ले जाते पकड़ लिया और इस तरह सारा सच उनके सामने आ गया. मदनादित्य ने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप मे बंदी बना लिया गया. जबकि माधवनल को पकड़ने के लिए सिपाहियों को भेजा गया. लेकिन सिपाहियों को आते देख माधवनल पहाड़ी से निकल भागा और उज्जैन जा पहुंचा.

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डोंगरगढ़ का विक्रमादित्य से भी है रिश्ता! 

जनश्रुति के मुताबिक, जब माधवनल उज्जैन पहुंचे तब वहां राजा विक्रमादित्य का शासन था. माधवनल की कहानी सुनकर राजा ने अपनी सेना लेकर कामाख्या नगरी पर चढ़ाई कर दी. भयंकर युद्ध के बाद विक्रमादित्य विजयी हुए और मदनादित्य, माधवनल के हाथो मारा गया. 

क्यों कहा जाता है डोंगरगढ़? 

मान्यता है कि इस जंग से वैभवशाली कामाख्या नगरी तबाह हो गई. चारो ओर डोंगर ही शेष रह गए. इस तरह इसका नाम डुंगराज्य पड़ा. कालांतर में इसे ही डोंगरगढ़ कहा जाने लगा.

विक्रमादित्य ने ली प्रेम की परीक्षा! 

जानकार बताते हैं कि युद्ध के बाद विक्रमादित्य ने कामकंदला और माधवनल की प्रेम की परीक्षा लेने की ठानी. उनकी ओर से मिथ्या सूचना फैलाई गई कि युद्ध में माधवनल की मृत्यु हो गई. यह बात जब कामकंदला तक पहुंची तो उन्होंने तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी. मान्यता है कि वह तालाब आज भी कामकंदला के नाम से प्रसिद्ध है. वहीं कामकंदला की जान देने की बात सुनकर माधवनल ने भी अपने प्राण त्याग दिए. 

उधर, यह सब देख राजा विक्रमादित्य ने मां बगुलामुखी की आराधना की और खुद भी अपनी जान देने के लिए तैयार हो गए. तब देवी ने प्रकट होकर उनको आत्महत्या करने से रोका. लेकिन विक्रमादित्य ने माधवनल और कामकंदला के जीवन के साथ यह वरदान भी मांगा कि माता बगुलामुखी अपने जागृत स्वरूप में यहां की पहाड़ी में प्रतिष्ठित हों. मान्यता है कि तब से मां बगुलामुखी (अपभ्रंश- बमलाई देवी) डोंगरगढ़ में प्रतिष्ठित हैं.

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