Photo Credit: Pankaj Singh Bhadauria
दंतेवाड़ा में Diwali पर अनोखी परंपरा, औषधीय काढ़े से देवी दंतेश्वरी को कराया जाता है स्नान
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दिवाली में देवी दंतेश्वरी के मंदिर में अनोखी परंपरा निभाते हुए औषधीय काढ़े से दंतेश्वरी मां को स्नान कराया जाता है और देवी दंतेश्वरी के स्वरूप को लक्ष्मी स्वरूप में पूजन किया है.
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यह पौराणिक मान्यताओं की अनूठी परंपरा सैकड़ों वर्षों से मनाई जा रही है.
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यह परंपरा रियासतकालीन परम्परा है, जिसे तुलसी पानी की परंपरा भी कहते है. तुड़पा नाम के इस मंदिर में हल्बा जाति के कर्मचारी निवास करते हैं.
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शीतला माता मंदिर के दंतेश्वरी सरोवर से दिवाली की सुबह 3 बजे सरोवर का जल लाया जाता है और उसी ब्रह्म मुहूर्त में देवी का स्नान कराया जाता है.
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ये पूजा विधान दिवाली से 9 दिन पहले ही शुरू हो जाता है. अंतिम दिन इस पूजा में मंदिर के सेवादार द्वारा जड़ी बूटियों को जमा कर दंतेश्वरी मंदिर में बनी पाकशाला में औषधीय को मट्टी की हंडी में खौलाकर देवी मां को इसी औषधीय पानी से स्नान कराने के बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है.
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दरअसल, दंतेश्वरी मंदिर में दिवाली के मौके पर देवी दंतेश्वरी को जड़ी-बूटियों से बने औषधीय काढ़े से स्नान कराया जाता है.
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इस प्रथा को निभाने के लिए एक हफ्ते तक तुलसी पानी से रस्म किया जाता जाता है और फिर अंतिम दिन ये विशेष अनुष्ठान किया जाता है.
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दिवाली पर देवी-दंतेश्वरी की पूजा लक्ष्मी स्वरूप में होती है और औषधीय काढ़े से स्नान कराते हैं. देवी दंतेश्वरी को स्नान पूजन का पौराणिक आधार है.
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इस काढ़े को बनाने के लिए लक्ष्मी पूजा के दिन पहले मंदिर में सेवा देने वाले कतियार काढ़ा तैयार करने जंगल से तेजराज, कदंब की छाल, छिंद का कद और अन्य जड़ी बूटियां लेकर पारंपरिक रायगिड़ी वाद्य और बाजा-मोहरी के वादन के बीच औषधियों को खास थाल में रखकर मंदिर तक पहुंचाया जाता है.
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इसके मंदिर के भोगसार यानी भोजन पकाने के कक्ष में उबालकर काढ़ा तैयार करते हैं.
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जिसे दीपावली की सुबह ब्रह्ममुहूर्त में देवी को इसी काढ़े से स्नान कराते हैं और लक्ष्मी स्वरूप में पूजन करते हैं.
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इसके साथ ही सप्ताह भर तक ब्रह्म मुहूर्त में होने वाली तुलसी पानी पूजा का समापन हो जाता है.
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