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ऐसे तैयार होता है राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

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इस समय पूरे देश में जोरों-शोरों से स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां चल रही है.

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इस दिन होने वाले समारोह में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन होता है ध्वजारोहण करना.

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दिल्ली के लाल किले के साथ पूरे देशभर में तिरंगा झंडा फहराया जाता है.

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देश के स्वाधीनता संग्राम में इस तिरंगे का बहुत बड़ा योगदान रहा है. दरअसल, स्वतंत्रता आंदोलन में इस ध्वज ने एक अस्त्र के रूप में काम किया.

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यही वजह है कि स्वतंत्रता के पश्चात देश का संविधान इसे देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार  किया.

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गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस देश इसे फहराकर ही राष्ट्रीय गौरव का अनुभव करता है.

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ऐसे में आज हम आपको यहां बताएंगे कि कैसे राष्ट्रीय ध्वज को तैयार किया जाता है.

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राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करने की प्रक्रिया ध्वज संहिता में वर्णित है.हर कोई इसका निर्माण नहीं कर सकता.

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भारत सरकार ने देश की दो संस्थाओं को राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण का अधिकार दिया है. 

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ये संस्था ही देशभर में झंडे का निर्माण करके इनकी सप्लाई करने के लिए अधिकृत हैं, जो ग्वालियर की मध्य भारत खादी संघ और कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ है.

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ग्वालियर की मध्य भारत खादी संघ न केवल मध्य प्रदेश बल्कि उत्तर भारत में भी इकलौती संस्था है जहां राष्ट्रीय ध्वज बनाये जाते हैं.

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इस बार ग्वालियर में बनाये गए राष्ट्रीय ध्वज का 16 प्रदेशों में ध्वजारोहण होगा, जिसमें दिल्ली भी शामिल है.

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इस बार लाल किले की प्राचीर से ग्वालियर में निर्मित ध्वज ही फहराया जाएगा.

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राष्ट्रीय ध्वज निर्माण की लंबी प्रक्रिया है, जिसमें तय मानक का धागा तैयार करने से लेकर तिरंगे में डोरी लगाने तक का काम किया जाता है.

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किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है. यार्न से लेकर फिनिश तक अनेक टेस्टिंग करनी पड़ती है. 

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पहले यार्न की टेस्टिंग, फिर बुनाई के बाद टेस्टिंग होती है.इसके बाद तीन कलर में डाई की जाती है.

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स्टिचिंग के बाद डायमेंशन और कलर की मशीन के जरिये हर झंडे की कड़ी चेकिंग की जाती है ताकि ध्वज संहिता के सभी मानक पूरे रहें.

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बीस से पच्चीस तरह की परीक्षण से गुजरने के बाद ही उसे आईएसआई टैग दिया जाता है. इसके बाद इसको कहीं भेजा जाता है.

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